खंखानते सिक्के
उस मिट्टी की डिबिया में
बचा बचा कर जोड़ते थे
पचास पैसे और एक रूपये
चवन्नी भी
जो कुच्छ भी बचता था
जाता था गुल्लक में
दिवाली के दिन फोड़ते थे वो
और मिट्टी के चूर के साथ
बड़ा सार्थक लगता था वो पैसे गिनना
और वो जाते थे एक और नए गुल्लक में
उनही पैसो से कितने ख्वाब खरीदते थे
और उन ख्वाबों के साथ माँ
का आश्वाशन की दिन अच्छे भी होंगे
आज जब सब है
तो एक चिट्ठी भी नहीं लिखते माँ को
जो शायद वो गुल्लक के सिक्कों की खनखन की तरह तरह सुनती
और कुछ और ख्वाब चुनती
i also used to have a gullak. But i didn value it much. It was just a game for me. Did not have any dreams on it.
ReplyDeletebut yes Ma ka aashvasan is something. I lack words to describe it but it has some power.
Very nice.
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