बहुत धीरे-धीरे बीतता है
महीने का आख़िरी सप्ताह
सूखे कूँवे की तरह खाली हो जाते हैं
सामानों के सारे डिब्बे
घर के दरवाज़े से
इन्हीं दिनों लौटना पड़ता है
भिखारियों को खाली हाथ
इन्हीं दिनों खाली हो जाती हैं
हमारी तमाम जेबें
डोलने लगती है
पिता के चेहरे पर उधारी की छाया
हम सब बस इन्ही दिनों के
ख़त्म होने का इन्तज़ार करते हैं ।
महीने का आख़िरी सप्ताह
सूखे कूँवे की तरह खाली हो जाते हैं
सामानों के सारे डिब्बे
घर के दरवाज़े से
इन्हीं दिनों लौटना पड़ता है
भिखारियों को खाली हाथ
इन्हीं दिनों खाली हो जाती हैं
हमारी तमाम जेबें
डोलने लगती है
पिता के चेहरे पर उधारी की छाया
हम सब बस इन्ही दिनों के
ख़त्म होने का इन्तज़ार करते हैं ।
simple and very touching. u r my gulzar.Besides that this is a very honest one.
ReplyDeleteSo honest, simple and heart rendering. Love this. Love the lines.
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