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Showing posts from December, 2012
सुनो तुम कुछ तो बोलो न बोलने से भी बढ़ता है अँधेरा हम कब तक अपने-अपने अँधेरे में बैठे अजनबी आवाजों की आहटें सुने इंतजार करें कि कोई आए और तुमसे मेरी और मुझसे तुम्हारी बात करे फ़िर धीरे-धीरे सुबह खिले   हम उजाले में एक दूसरे के चेहरे पहचानें जो अब तक नहीं हुआ तब शायद जाने  कि हममें से कोई भी गलत नहीं था 
सोचता हूँ खुदखुशी कर लूँ - मैंने कहा सोचती हूँ खुदखुशी कर लूँ - उसने कहा वक़्त के टूटे शाख में हम दोनों पड़े थे

ख्याल

ख्याल  पुरे नहीं हुएं  मसल दिए है फ़ेंक दिया है उन्हें कही शायद सुलग रहे होंगे या फिर राख राख हो रहे होंगे सिगरेट की तरह

साफ़ - साफ़

जो लोग रौशनी में खड़े होते है वो अँधेरे में खड़े लोगों को देख नहीं सकते लेकिन अँधेरे में खड़े लोग रौशनी में खड़े लोगों को देख लेते है साफ़ - साफ़