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Showing posts from November, 2011

चलो एक ख्वाब लिखते हैं

चलो एक ख्वाब लिखते हैं रास्तों से चल कर टेढ़े मेढ़े इधर उधर अपने ठिकाने से दूर  एक नया आशियाँ बुनते हैं चलो एक ख्वाब लिखते हैं इस शोरगुल, धूल से परे आँखों की लालिमा को हटाकर पहाड़ों से होकर  समंदर की लहरों में चलते हैं चलो एक ख्वाब लिखते हैं सरहुल से विवध और हर एक दिन से अलग अलसाते चाँद में,  और तुम्हारी हंसी की रौशनी में कुछ और नया 'शगल' करते हैं चलो एक ख्वाब लिखते हैं न मात्र की फिक्र और न हो अंतरे का ध्यान बस सुर हो तेरा और मेरा चाहे लगे न लगे कोई तान रमा दे हमें ऐसी ग़ज़ल लिखते है चलो एक ख्वाब लिखते हैं