एक बात जो मुझे किसी भी समस्या के बारे में अच्छी लगती है की हर समस्या अपना ही समाधान है। नहीं मेरा ये कतई ईरादा नहीं है की पहले ही लाइन में आपको कनफ्यूज़ करूँ, लेकिन ये बड़ा ही रोचक है की हर एक समस्या कैसे किसी समाधान की तरफ ही बढ़ती है। समस्या इसी लिए है की समाधान हो । मन करता है जिस किसी ने भी समस्या को डीफाइन किया है उसके पीठ को थपथपाऊँ।
बात दरअसल ये है की कुच्छ दीनों से गालिब जी की एक ग़ज़ल दिल में बस गयी है
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पे रौनक
वो समझते है की बीमार का हाल अच्छा है
देखते क्या पाते है उसाक बुतो से क्या फैज
ईक बराहम्ण ने कहा है की ये साल अच्छा है
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल को खुश रखने का ग़ालिब ये खयाल अच्छा है
कभी कभार कुच्छ सोच जबर्दस्त जादू करती है। सोच की वास्तविकता या वैधता पर संशय करना मूर्खता सी लगती है ।शायद कुछ उसी तरह जैसे खुशी को जिंदगी के साथ रिलेट किया जाये। अनततः समस्याए सिर्फ सोच है जो मेरे अंदर है। तो उसे बस ऐसे ही छोड़ दिया जाये। और मज़े की बात ये है की ये भी तो समस्या का समाधान है ।
प्रोब्लेम के साथ अच्छी बात ये भी है की आपको पता लगते रेहता है की आप उसके साथ क्या कर रहे है
और जब तक आप को ये पता है तो परेशानिया आराम से कट जाती हैं । दिक्कत तो तब होती है जब समस्या का पता ही न हो । बहरहाल उससे बड़ी बात ये भी है की आप को समाधान खोजने की जिजीविषा है या नहीं। और आपको कुछ परेशान कर रही है या नहीं । आज कल बहुत सारे अँग्रेजी terms आ गए है जो आप पे चेप दिया जाता है। आपको लगता है कहीं आपको डीफेंसिव तो नहीं सोचा जा रहा? आपके बारे में ये तो नहीं सोचा जा रहा की आपमें बहुत ईगो है ?और एट्टीट्यूड तो सब से ज्यादा एक्स्प्लोइटेड शब्द है ! लेकिन सार यही है की सबसे बड़ी समस्या है समस्या का पता न होना क्यूंकी समस्या का पता लगते ही समाधान खुद मिल जाता है ।
खैर इतने शब्दो के मोहजाल के बीच में आखिरी में ग़ालिब जी ही की लिखी हुई कुच्छ और शब्द :
"ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों ?
खैर इतने शब्दो के मोहजाल के बीच में आखिरी में ग़ालिब जी ही की लिखी हुई कुच्छ और शब्द :
"ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों ?
Comments
Post a Comment