यह कटा कटा सा विछिप्त चेहरा
कुच्चा सा और साथ में
जमाने की तेज भट्टी में पका हुआ
ट्रेन की खिड़की सा हो गया है चेहरा
जिसके भीतर से आँखें
दृश्यों को छूते हुए विलिप्त हो जाती है
कभी लह्लाता हुआ और कभी लहुलुहान
कभी बारिश से ध्वस्त तो कभी
उस बारिश के बिना रुखा सा
किसान की फसलो की तरह हो गया
है चेहरा
गर भरना है रंग तो
ले आओ रंग उस अधबने हुए ईमारत की धुल
साथ में ले आओ
सुखी हुई मछली का ढेर
उसके शरीर के रंग के लिए
तम्बाकू से काले हुए होंट और पीले दांतों के लिए
ले आओ कुच्छ राख
और भर दो इसमें
कुछ याद उन श्रमिको के
जिनका नाम तुम अभी अभी
भूल चुके हो
(या जिनका नाम तुमने जाना भी नहीं )
कुच्चा सा और साथ में
जमाने की तेज भट्टी में पका हुआ
ट्रेन की खिड़की सा हो गया है चेहरा
जिसके भीतर से आँखें
दृश्यों को छूते हुए विलिप्त हो जाती है
कभी लह्लाता हुआ और कभी लहुलुहान
कभी बारिश से ध्वस्त तो कभी
उस बारिश के बिना रुखा सा
किसान की फसलो की तरह हो गया
है चेहरा
गर भरना है रंग तो
ले आओ रंग उस अधबने हुए ईमारत की धुल
साथ में ले आओ
सुखी हुई मछली का ढेर
उसके शरीर के रंग के लिए
तम्बाकू से काले हुए होंट और पीले दांतों के लिए
ले आओ कुच्छ राख
और भर दो इसमें
कुछ याद उन श्रमिको के
जिनका नाम तुम अभी अभी
भूल चुके हो
(या जिनका नाम तुमने जाना भी नहीं )
Very nice. Sometime you don't have words to express when something touches your heart. More than the poetry, probably what i like, is the style of potrayal. The story. Complete yet never ending- thought provoking.
ReplyDeleteShayad aisi galtiyan hum kai baar karten hai...
ReplyDelete