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Showing posts from August, 2012

लक्ष्य

फिर आज किसी ने , उनकी कतारों कों तोड़ दिया है एक लक्ष्मण रेखा लगा दिया है उस के पार न जा सकेंगी वो खैर हताश नहीं है वो अपना रास्ता फिर तलाशेंगी थोड़ा और समय लगे थोड़ी और पीड़ा हो थोड़ा रास्ता और लंबा हो जाये अपनी मंज़िल पे पहुँच कर ही दम लेंगी ये चींटिया

WOW and GOW (WomanIyas and Galliya of Wasseypur)

  In our house Mazarina works, she proudly calls herself    a Pethaan (Pathaan) and rues her destiny for working as a domestic help (what a Pethaan should have never done). She is rash, one the face attitude, witty and full of expletives. She makes me remember Nagma Khatoon. Not fighting for empowerment but empowered.   Not looking for something for her but assuredly and powerfully ensuring her husband’s revenge is complete. Not giving a damn if her husband is cheating but wont share her house. And has even guts to enter a brothel and drive her husband away. And is also concerned he eats nicely so that his “performance” outside the house is not loathed. Lives in penury but won’t accept alms of the enemy. Pride is what defines her. Pride is what I find in both Nagma and Mazarina. Pride is what defines both of them. Richa Chaddhha , a delhi   girl has picked up the accent fantastically. Local bihari accent is something which would come naturally to Bihari ...

हम कभी भी कहीं नहीं थे

हम ऐसे गर्भ नहीं थे जिसे अजन्मे मार दिया जाता माँ के हाथ खाली थे हमे थामने के लिए   हम नहीं थे उन दंगो में जहां जाने गयी ना ही हम वहाँ थे जहा जलजले हुए हम नहीं थे 9/11 , 7/7 , 26/11 या इन बहुत सारी तारीखों में उन दीनों कभी नहीं थे दिल्ली , मुंबई , या गुजरात में कभी ऐसी ट्रेन नहीं ली जो कहीं पहुंची ही नहीं   बस फंसे रहे घर के बिछाये हुए फँदो से कहीं नहीं है हम जहां जीवन हार रही है   अभी बस यहाँ है जोड़ रहे है क्या खोया और क्या पाया है लेकिन हम को यकीन है गलत वक़्त पर हम कभी भी कहीं नहीं थे