सुनो
तुम कुछ तो बोलो
न बोलने से भी
बढ़ता है अँधेरा
हम कब तक
अपने-अपने अँधेरे में
बैठेअजनबी आवाजों कीआहटें सुने
इंतजार करेंकि कोई आए
और तुमसे मेरी
और मुझसे तुम्हारीबात करे
फ़िर धीरे-धीरे सुबह खिले
हम उजाले में
एक दूसरे के चेहरे पहचानें
जो अब तक नहीं हुआ
तब शायद जाने
कि हममें से
कोई भी गलत नहीं था
तुम कुछ तो बोलो
न बोलने से भी
बढ़ता है अँधेरा
हम कब तक
अपने-अपने अँधेरे में
बैठेअजनबी आवाजों कीआहटें सुने
इंतजार करेंकि कोई आए
और तुमसे मेरी
और मुझसे तुम्हारीबात करे
फ़िर धीरे-धीरे सुबह खिले
हम उजाले में
एक दूसरे के चेहरे पहचानें
जो अब तक नहीं हुआ
तब शायद जाने
कि हममें से
कोई भी गलत नहीं था
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