सुनो तुम कुछ तो बोलो न बोलने से भी बढ़ता है अँधेरा हम कब तक अपने-अपने अँधेरे में बैठे अजनबी आवाजों की आहटें सुने इंतजार करें कि कोई आए और तुमसे मेरी और मुझसे तुम्हारी बात करे फ़िर धीरे-धीरे सुबह खिले हम उजाले में एक दूसरे के चेहरे पहचानें जो अब तक नहीं हुआ तब शायद जाने कि हममें से कोई भी गलत नहीं था