हलकी ठंडी फुहार और साथ में
शाम की विस्तृत सूर्य किरण
भारी पत्तो का धरा से
उठने का प्रयास
समय से मैंने पुछा
क्या ये शाम बाँध लूँ मैं ?
समय बोला
दिए की लौ की तरह जलते रहोगे
तोह यह शाम तुम्हारी है
सूरज को रूठ्कर न जाने दोगे तो
ये शाम तुम्हारी है
पक्षियों को चहचहाने दोगे तो
यह शाम तुम्हारी है
मुझे कभी कभी मुड़कर देख लोगे तो
ये शाम तुम्हारी हैं
awesome...i think one of your best.
ReplyDeletereflects a lot about our state of mind but in a very subtle way. Its very beautiful poetry.
keep it up!