चलो एक ख्वाब लिखते हैं
रास्तों से चल कर
टेढ़े मेढ़े इधर उधर
अपने ठिकाने से दूर
एक नया आशियाँ बुनते हैं
चलो एक ख्वाब लिखते हैं
इस शोरगुल, धूल से परे
आँखों की लालिमा को हटाकर
पहाड़ों से होकर
समंदर की लहरों में चलते हैं
चलो एक ख्वाब लिखते हैं
सरहुल से विवध और हर एक दिन से अलग
अलसाते चाँद में,
और तुम्हारी हंसी की रौशनी में
कुछ और नया 'शगल' करते हैं
चलो एक ख्वाब लिखते हैं
न मात्र की फिक्र और न हो अंतरे का ध्यान
बस सुर हो तेरा और मेरा
चाहे लगे न लगे कोई तान
रमा दे हमें ऐसी ग़ज़ल लिखते है
चलो एक ख्वाब लिखते हैं
Beautiful.
ReplyDeleteIts very lovely and beautiful.
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