यादो के परत खुल रहे है आज हम बहुत दिनों बाद लिख रहे है पसीने से लथपथ गर्मी में ठन्डे पहाड़ियों में तुम्हारे साथ हम धीरे धीरे पिघल रहे है यादों के परत .... अकेले बालकोनी में टहलते हुए तुम्हारे हाथ की अंगूठी को साथ चलते हुए छेड़ रहे है यादो के परत ... उसी बालकोनी के कोने से उस पेड़ के पार चाँद को हिलते हुए, तुम्हारे बओलों में रौशनी भर रहे है यादों के परत ... बातों बातों में नोक झोंक और नोक झोंक से एक और बात हर बार की तरह इस बार भी असली मुद्दे से भटक रहे है यादों के परत... समुन्दर किनारे नाम लिखकर लहरों का इंतज़ार करते हुए रेट से पुरे पानी में तुम्हारे नाम का असर कर रहे है यादों के परत...