पानी के आधे भरे और खाली बोतल , यदा - कदा ग्लूकोस बिस्कुट के पैकेट , खाने का ये कागज़ सा लगने वाला सिंथेटिक प्लेट (पहले पत्तल आते थे ), केले के छिलके , खाने की टूटी सी रसोई , बदबू फैलाती हुई सड़ी गली सब्जियां , अजीब सी टोपी (जो सूत की नहीं है ) और बहुत सी जगह में कागज़ के छोटे छोटे तिरंगे . यही बची है आज मेरे साथ. लगभग एक माह के बाद वो त्योव्हार आएगा जिससे मेरा नाम सार्थक होता है. रामलीला. तब तक बीच बीच में कई त्यौहार आते जाते रहेंगे कल ही अन्ना त्यौहार खत्म हुआ है !!